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Pranayam and Treatments of disease

रोग दूर भगाएँ-भाँति-भाँति के प्राणायाम
प्राणायाम एक प्रकार से प्राण के आयाम में जाकर किया गया व्यायाम है। इससे समस्त अंग-अवयवों को शक्ति मिलती है। वे स्वस्थ-सबल बनते हैं। इसलिए योगशास्त्रों में स्वास्थ्य-संवर्द्धन के लिए प्राणायाम को एक अति उत्तम उपाय गया है। इसमें स्थूल से लेकर सूक्ष्मशरीर तक को प्रभावित करने की सामर्थ्य है, अतएव इसे आध्यात्मिक उपकारों में सर्वोपरि माना गया है।
प्राणायाम के अनेकों प्रकार हैं। सभी की अपनी-अपनी क्षमता और विशिष्टता है। सभी की अपनी-अपनी क्षमता और विशिष्टता है। सभी में रोग निवारण के अद्वितीय गुण हैं। यदि व्यक्ति अपनी दिनचर्या में इसे सम्मिलित कर ले तो वह आजीवन स्वस्थ बना रह सकता है। आदमी यदि नीरोग नहीं रहेगा तो वह अपनी दैनिक क्रियाकलाप संपन्न कैसे कर सकेगा? ऐसी स्थिति में तो आत्मिक प्रगति उसके लिए दिवास्वप्न बन जाएगी, जबकि प्राणायाम का एक उद्देश्य आत्मोन्नति भी है। वह शरीर-स्वस्थता प्रदान करने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मोत्कर्ष की ओर भी ले चलता है। इसलिए प्राणायाम जीवन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।
प्राणायाम के तीन अंग हैं-श्वास लेना, रोकना और छोड़ना। इन तीनों क्रियाओं का योग ही पूर्ण प्राणायाम है। सभी प्राणायाम न्यूनाधिक अंतर के साथ इन्हीं का संयोग हैं।
प्राणायाम के अभ्यास से सर्वप्रथम फेफड़ों को लाभ पहुँचता है। वे लचीले और मजबूत बनते हैं। शरीर में गरमी उत्पन्न होती है, जो स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव डालती है। बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है। जितना अधिक ऑक्सीजन शरीर में बाहर निकलेगा।
शारीरिक व्यायाम से शरीर में रासायनिक परिवर्तन होता हैं और तत्वों का विभाजन होता है, फलस्वरूप शक्ति का ह्रास होता है। इस ह्रास की पूर्ति प्राणायाम द्वारा काया में अधिक ऑक्सीजन पहुँचाकर की जाती है। मस्तिष्क एवं नाड़ी संस्थान को भी यह प्रभावित करता है। मस्तिष्क के कार्यों को सुव्यवस्थित करने में इसका महत्वपूर्ण हाथ है। यह संपूर्ण मस्तिष्क के प्रसुप्त केंद्रों को जाग्रत करता और उन्हें शक्ति प्रदान करता है। इसके नियमित अभ्यास से पिट्यूटरी एवं पीनियल ग्रंथियों का भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर विकास होता है।
इससे कान, आँखों, नाक जिव्हा एवं गले की व्याधियाँ भी दूर होती हैं। टान्सिल, बहरापन, अस्पष्ट आवाज, मुँहासे आदि शिकायतें भी प्राणायाम से समाप्त हो जाती हैं। आसन की तरह प्राणायाम में भी रोगों को रोकने एवं उनका उपचार करने के दोनों तरह के गुण मौजूद हैं। यह शरीर में जीवनीशक्ति उत्पन्न करता है, जिससे बीमारियाँ नहीं होती। यदि कोई बीमारी हो जाती है तो विभिन्न प्राणायामों द्वारा उसका उपचार किया जा सकना संभव है।
यह यकृत एवं गुरदे के क्रियाकलापों को भी सुव्यवस्थित करता है, परिणामस्वरूप रक्त परिवहन सुचारु रूप से होने लगता है और ऑक्सीडेशन की क्रिया तेज हो जीती है। इसके अतिरिक्त यह भूख बढ़ाता और आँतों को व्यवस्थित करने का कार्य भी करता है। नाड़ी संस्थान भी इससे अप्रभावित नहीं रहता। यह स्नायु संस्थान को सुव्यवस्थित और मजबूत बनाता है।
यह प्राणायाम के कुछ सामान्य प्रभाव हुए। इसके विशेष प्रभावों के लिए विशेष प्रकार के प्राणायाम करने पड़ते है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण प्राणायाम दिए जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर कोई भी व्यक्ति लाभान्वित हो सकता है और स्वस्थता अर्जित कर सकता है
सर्वप्रथम प्राणायाम कैसे किया जाए, यह बताना आवश्यक है। यहाँ उसी का उल्लेख किया जा रहा है। पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाइए। कुछ क्षण तक शाँति से बैठकर अपने को प्राणायाम के लिए तैयार कीजिए। अब दायें हाथ के अंगूठे से दायीं नासिका छिद्र को बंद कीजिए और बायीं से धीरे-धीरे श्वास खींचिए। श्वास प्रवाहपूर्ण हो, उसमें किसी प्रकार के झटके न हों साँस तब तक लीजिए, जब तक फेफड़े वायु से पूर्णरूपेण भर न जाएँ। अब बायीं नासिका के छिद्र को मध्यमा और अनामिका से बंद कीजिए और दाहिनी नासिका छिद्र को खोलकर श्वास छोड़िए। जैसे ही संपूर्ण वायु बाहर निकल जाए, तब उसी से अर्थात् दाहिनी नासिका छिद्र से पूरक कीजिए। बाद में उसे बंद कर बायें श्वास छोड़िए। यह एक आवृत्ति हुई। इसी को 15-20 बार दुहराएं। यह साधारण प्राणायाम हुआ। इससे फेफड़े मजबूत होते हैं और नासिका संबंधी रोग दूर।
इस साधारण प्राणायाम हुआ। इससे फेफड़े मजबूत होते हैं और नासिका संबंधी रोग दूर।
साधारण प्राणायाम का भी भली-भाँति अभ्यास हो जाने के पश्चात विशेष प्राणायामों की बारी आती है। इसमें प्रथम हैं-
(1) समवेत प्राणायाम।*
साधारण प्राणायाम के पश्चात इसका अभ्यास करना चाहिए। इसकी संपूर्ण विधि साधारण प्राणायाम की तरह है, केवल पूरक इसमें दोनों नासाछिद्रों से धीरे-धीरे बिना किसी झटके या व्यवधान के प्रवाहपूर्ण तरीके से किया जाता है। अधिक-से-अधिक वायु फेफड़ों में भर जाने के उपराँत 1-3 सेकेंड तक साँस रोकनी होती है, तदुपराँत दोनों नासा छिद्रों से धीर-धीरे बिना झटके से साँस छोड़ते है। पुनः पहले की तरह प्रवाहपूर्ण पूरक और उसके बाद लयपूर्ण रेचक दोनों नासा छिद्रों से बारी-बारी से किया जाता है। इसे 10 से 15 बार दुहराया जाता है।
इस प्राणायाम में थोड़ा परिवर्तन कर दिया जाए और इसमें से अंतः कुँभक को हटा दिया जाए तो जो स्थिति बनेगी उसमें साँस को बिना रोके लगातार लेना और छोड़ना पड़ता है, किंतु साँस लंबी, गहरी, धीरे-धीरे और प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए। यह एक अद्भुत प्राणायाम है और उतना ही विलक्षण इसका परिणाम है। अनिद्रा के क्रोनिक रोगियों के लिए यह एक रामबाण औषधि के समान है। इससे पुराने-से-पुराने अनिद्रा रोग दूर हो जाता है और व्यक्ति को गहरी नींद आने लगती है। 2 मिनट से आरंभ करके धीर-धीरे इसे 20 मिनट तक बढ़ाया जा सकता है।
लगभग 15 दिन में इसका परिणाम आना शुरू हो जाता है। जिन्हें नींद आने की साधारण शिकायत है, वे भी इससे लाभ उठा सकते हैं।
(2) भ्रामरी प्राणायाम*
इसका अभ्यास रात्रि के एकाँत में तनिक विलंब से या प्रातः के प्रथम प्रहर में किया जाना चाहिए। मन को शाँत कर आसन पर बैठिए। दोनों अँगुलियों से कानों को बंद कर लीजिए। तत्पश्चात धीर-धीरे पूरक कीजिए। फेफड़े साँस से भर जाने के उपराँत एक क्षण के लिए श्वास को रोकिए। इसके बाद भ्रमर गुँजन के समान आवाज निकालते हुए श्वास धीरे-धीरे छोड़िए। यह गुँजन तब तक होता रहे, जब तक श्वास पूरी तरह निकल न जाए। इस स्थिति में मुँह बंद रहना चाहिए और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि मुँह से साँस न निकले।
जिव्हा भी अविचल हो। ध्यान गुँजन की आवाज पर केंद्रित होना चाहिए। यह आवाज अविरल गति से हो एवं उसमें एकरूपता और अखंडता हो।
यह बहुत सरल प्राणायाम है। प्रथम दिन से ही अच्छी तरह इसका अभ्यास किया जा सकता है। इस प्राणायाम से गले की सब बीमारी धीरे-धीरे दूर हो जाती है। कंठनली मजबूत बनती तथा आवाज सुरीली हो जाती है।
(3) उज्जयी प्राणायाम*
आसन में बैठिए और आँखों बंद कर लीजिए। अब दोनों नथुनों से श्वास लेते समय खर्राटे लेने की-सी आवाज गले में उत्पन्न कीजिए, इस बीच मुँह बंद रहे और श्वसन क्रिया केवल नाक से हो। श्वास पूरी तरह ले चुकने के बाद कुछ क्षण तक उसे भीतर रोकिए। ध्वनि प्रवाहपूर्ण और एक जैसी हो, इसका ध्यान रहें इसकी 10 से 12 आवृत्तियां प्रतिदिन की जा सकती हैं।
यह प्राणायाम वैसे लोगों के लिए विशेष लाभप्रद है, जिनके टान्सिल बढ़ जाते हैं, जुकाम जल्दी हो जाता है, जिन्हें इन्फ्लुएंजा एवं ब्रौंकाइटिस की शिकायत हो जाती है। संगीतप्रेमियों के लिए भी यह लाभप्रद है। यदि वे इसका नियमित अभ्यास करें तो उनका गला स्वस्थ एवं सुमधुर हो जाता है। यह उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए भी लाभदायक है। इससे रक्तचाप सामान्य बना रहता है। इसका प्रभाव कान नाक एवं गले की बीमारी पर भी पड़ता है। पेट के रोगों के लिए भी यह उपयोगी है।
(4) शीतली प्राणायाम*
इसके अभ्यास के लिए आसन पर बैठिए। इसके बाद दोनों होठों को कौवे की चोंच की तरह बनाकर जिव्हा को उसमें से थोड़ा बाहर निकाल लीजिए। दोनों नथुनों को बंद कर लीजिए। अब धीरे-धीरे मुँह से श्वास खींचिए। यथाशक्ति कुंभक करके दोनों नथुनों से वायु धीरे-धीरे बाहर निकालिए। रेचक करते समय जीभ को अंदर कर लीजिए। प्रतिदिन इसकी 8-10 आवृत्ति करनी चाहिए।
शीतल प्राणायाम में पूर्णता प्राप्ति के पश्चात व्यक्ति भूख-प्यास पर विजय प्राप्त कर सकता है। इससे जुकाम, अपच जैसी शिकायतें दूर हो जाती हैं। इससे शीतलता बढ़ती है।
(5) भस्त्रिका प्राणायाम*
आसन पर बैठिए एवं बायीं नासिका से वेगपूर्वक जल्दी-जल्दी दस बार लगातार पूरक-रेचक कीजिए। कुँभक की आवश्यकता नहीं। फिर ग्यारहवीं बार उसी नासिका से लंबा पूरक कीजिए, यथाशक्ति कुँभक करने के उपराँत दाहिने नथुने से धीरे-धीरे श्वास बाहर निकालिए। इसी क्रिया को अब दाहिने नथुने से दुहराइए। यह भस्त्रिका प्राणायाम हुआ। आरंभ में इसे पाँच बार से अधिक नहीं करना चाहिए।
साधारण स्वास्थ्य के व्यक्ति को इसका नियमित अभ्यास करना चाहिए। जिनके फेफड़े कमजोर हों या जो बीमार है, वैसे लोगों को इसे नहीं करना चाहिए। इस प्राणायाम से दमा तथा श्वसन संबंधी दोष दूर होता है, रक्त शुद्ध होता है एवं संपूर्ण शरीर में अधिक मात्रा में रक्त संचालन होता है।
इससे आत्मोत्थान में भी सहायता मिलती है। ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि, रुद्रग्रंथि तीनों का यह भेदन करता है। इसके द्वारा सुषुम्ना में से विहंगम गति ऊर्ध्व प्रदेश की ओर बढ़ती है। इसी से अग्नितत्व प्रदीप्त होता है।
(6) प्लाविनी प्राणायाम*
आसन पर बैठिए एवं दोनों भुजाओं को ऊपर की ओर लंबी तथा सीधी रखिए। अब दोनों नथुनों से पूरक कीजिए और सीधा लेट जाइए। लेटते समय दोनों हाथों को समेटकर तकिये की तरह सिर के नीचे लगा लीजिए, कुँभक कीजिए और जब तक कुँभक रहे, तब तक भावना कीजिए- मेरी देह रुई के समान हलकी है। फिर बैठकर पूर्व स्थिति में आ जाइए और धीरे-धीरे नथुनों से वायु बाहर निकाल दीजिए। यह प्लाविनी प्राणायाम है, इससे पाचन क्रिया बढ़ती है। इसके अतिरिक्त ‘हिस्टीरिया’ रोग दूर करने में यह सहायता देता है। इससे आध्यात्मिक लाभ भी मिलता है और ऋषि सिद्धियों का मार्ग प्रशस्त होता है।
(7) केवली प्राणायाम*
आसन पर बैठिए। दोनों नथुनों से साँस धीरे-धीरे खींचिए। श्वास खींचते समय मानसिक रूप से ‘सो’ का उच्चारण कीजिए और छोड़ते समय ‘हम’ का। कुँभक की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार मानसिक रूप से ‘सोऽहम्’ शब्द उच्चरित करिए। यह केवली प्राणायाम हुआ। इस प्राणायाम से मन को एकाग्रता की प्राप्ति होती है।
उपर्युक्त प्राणायामों में से कोई यदि अपनी आवश्यकतानुसार प्राणायाम का अभ्यास नियमित रूप से करता रहे तो वह अपना स्वास्थ्य-संरक्षण करने में सफल रहता है। हर एक को इनसे लाभ उठाना चाहिए।
Let the diseases run away – like pranayama
Prāṇāyāma is a type of exercise done in the dimension of prana. This gives power to all organs. They become healthy and strong. Therefore, pranayama has been a very good remedy for health-enhancements in the yōgaśāstrōṁ. It has the power to influence the macro to the sūkṣmaśarīra, so it is considered paramount in spiritual practices.
There are many types of pranayama. Everyone has their own potential and uniqueness. Everyone has their own potential and uniqueness. There are unique qualities of disease prevention in all. If a person inserts it in his routine, he can stay healthy lifelong. If a man is not healed, how will he be able to perform his daily activity? In such a situation, the spiritual progress will become a daydream for him, while the purpose of pranayama is also a self-respect He also leads the body to self-respect and also leads the person to self-respect. So pranayama should be an integral part of life.
There are three parts of pranayama – breathing, stopping and leaving. The Yoga of these three actions is the complete pranayama. All Pranayama are a coincidence with the unique difference.
The practice of pranayama gives benefits to the lungs first. They become flexible and strong. The body produces heat, which makes good impact on health. Oxygen is achieved in large quantities. The more oxygen will come out in the body.
Physical exercise causes chemical changes in the body and divides the elements, resulting in the deterioration of power. This deterioration is supplied with more oxygen in the body by pranayama. It also affects the brain and pulse institute. It has an important hand to streamline the work of the brain. It wakes and gives strength to the entire brain centers. The regular practice of the pituitary and pineal glands develops on both physical and spiritual levels.
This also removes ears, eyes, nose, and throat. Ṭānsila, deafness, vague voice, acne etc. Complaints also end with pranayama. Like Asana, there are both types of properties to prevent and treat diseases in pranayama. It generates a life-life in the body, which does not have diseases. If there is a disease, it is possible to be treated by various pranayamas.
It also streamline the activities of liver and major, as a result, blood transport starts to be smooth and the action of the detoxification is intensified. In addition, it increases hunger and also works to organize the eyes. The Pulse Institute is also not unaffected by it. This muscle makes the institute tidy and stronger.
This was some common effects of pranayama. Special types of pranayama have to be done for its special effects. Here are some important pranayama which can be benefited by adopting and earn health.
It is necessary to tell how to do pranayama first. The same is being mentioned here. Sit in lotus, sid’dhāsana or sukhasan. Sit in peace for a few moments and prepare yourself for pranayama. Now stop the right the pores with right hand thumb and breathe slowly from the left. Inhale the breath, do not have any shocks in it, take the breath until the lungs are filled with the air. Stop the left the pores with middle and finger and open the right the pores. As soon as the whole wind goes out, complement the same, that is, from the right side. Stop it later and leave the left breath. This was a frequency. Repeat this 15-20 times. This simple pranayama happened. This makes lungs stronger and the diseases.
This simple pranayama happened. This makes lungs stronger and the diseases.
After the practice of ordinary pranayama, it comes to special pranayama. This is the first –
(1) assembled pranayama. *
This should be practiced after ordinary pranayama. The complete method of this is like ordinary pranayama, only the supplement is done in the pravāhapūrṇa way without any shocks or disruption from both the nāsāchidrōṁ. More than 1-3 seconds of air-lungs are inhaled, both are inhaled, but both of them exhale from nasa holes. Pravāhapūrṇa Supplement as before and then the ‘ laxative are done by both nasa holes. This is repeated 10 to 15 times.
This pranayama should be made a little change and the end of it is removed. If the situation is removed, it has to be stopped and left without stopping the breath, but the breath should be long, deep, slowly and pravāhapūrṇa. This is a wonderful pranayama and the more eccentric it is the result. This is a panacea for chronic patients of insomnia. This takes away old-to-chronic insomnia disease and the person starts to sleep deep. Starting from 2 minutes, it can be extended for 20 minutes.
In about 15 days its result starts coming. Those who have a simple complaint of sleep can also benefit from it.
(2) bhrāmarī pranayama *
This should be practiced in the night of the night with a little delay or in the first morning of the morning. Sit the mind and sit on the aasan. Shut the ears with both fingers. Then complement slowly. Stop breathing for a moment to fill the lungs with breath. After this, leave the breathing slowly with the sound of bee gum̐jana. Let this gum̐jana be until the breath goes completely. In this situation, the mouth should remain closed and this thing should be taken care that the mouth does not breathe.
Life is also an animal. Meditation should be focused on the voice of the gum̐jana. This voice should be at continuous pace and it has uniformity and integrity.
This is very simple pranayama. It can be practiced well since first day. All the diseases of the throat are slowly removed from this pranayama. The kaṇṭhanalī becomes strong and the voice becomes melodious.
(3) ujjayi pranayama *
Sit in the asan and close your eyes. Now, when breathing with both the nostrils, generate the snoring voice in the throat, meanwhile the mouth is closed and the respiratory action is only from the nose. Stop her inside for a few moments after breathing completely. Be the sound of the sound and the same, take care of it from 10 to 12 everyday.
This pranayama is a special benefit for people who increase their ṭānsila, colds quickly, which complain about influenza and brauṅkā’iṭisa. This is also beneficial for the saṅgītaprēmiyōṁ. If they practice it regularly, their throat becomes healthy and healthy. This is also beneficial for high blood pressure patients. This makes blood pressure normal. The effect of this is also on ear nose and throat disease. This is also useful for stomach diseases.
(4) śītalī pranayama *
Sit on easy for this practice. Then make both lips like a crow’s beak and take a little out of it. Shut both the nostrils. Now gently inhale the mouth. By taking the power of power, take out the air slowly from both the nostrils. Get the tongue inside while you are sticking. 8-10 frequency should be done everyday.
After completion in soft pranayama, a person can conquer hunger and thirst. This removes complaints like colds, indigestion. This increases the coolness.
(5) bhastrikā pranayama *
Sit on the aasan and get rid of the left with the left. There is no need for a kum̐bhaka. Once again, complement the same the for the eleventh time, take out the breathing from the right hand to the right path. Do this action now with right hand. This is the bhastrikā pranayama. It shouldn’t be more than five times initially.
The person of ordinary health should practice this routine. People should not be able to do this, whose lungs are weak or those who are sick. This pranayama removes asthma and respiratory defects, blood is pure and the whole body has more blood operations.
This also helps in self-respect. The Brahmagranthi, the viṣṇugranthi, the rudragranthi of the three. By this the beautiful speed of sushumna leads to the region of Uttar Pradesh. This is what happens to the future.
(6) plāvinī pranayama *
Sit on the aasan and keep both sides long and straight. Now complement both the nostrils and lie straight. Put both hands in your hand and put it under your head like a pillow, do it and feel as long as you are in the control, my body is like a cotton. Come and sit in the east and throw the wind out of the nostrils. This is plāvinī pranayama, it increases digestion. In addition to this, the ‘HYSTERIA’ helps to relieve the disease. This also gives spiritual benefits and the path of sages is paved.
(7) kēvalī pranayama *
Sit on the aasan. Breathe slowly from both nostrils. Pronounce ‘ sleep ‘ mentally while breathing and while leaving ‘ we ‘. There is no need for a kum̐bhaka. In this way, raise the word ‘Sō̕ham’ mentally. This is kēvalī pranayama. This pranayama gives mind to concentration.
One of the above pranayama, if the practice of pranayama is done regularly on the basis of its own, it is successful in doing its health. Every one should take advantage of them.

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