*** Available online yoga classes, yoga therapy, yoga certification, and retreats***

Welcome

Glad to see you in our store

celibacy and its importance physically and mentally in our life

शारीरिक ब्रह्मचर्य से भी अधिक महत्व ‘मानसिक कामुकता’ से बचने का है~
१. कुदृष्टि एवं काम-चिन्तन से मानसिक विकृति घड़ी- घड़ी उत्पन्न होती रहती है। काम सेवन से जैसे शारीरिक शक्ति घटती है – उसी प्रकार काम-चिन्तन से मनोबल एवं आत्मबल घटता है।
२. काम शक्ति, जीवन शक्ति का एक चिन्ह है, किन्तु उसका निर्धारित अवसर पर ही प्रयोग उचित है। अमर्यादित कामोत्तेजना एक प्रकार की प्रत्यक्ष अग्नि है। कामुकता के भाव उत्पन्न होते ही, शरीर की गर्मी बढ़ जाती है, श्वास गर्म आने लगता है, त्वचा का तापमान बढ़ जाता है तथा रक्त चाप बढ़ जाता है।
३. फलतः शरीर की कुछ धातुएँ पिघलने और कुछ जलने लगती हैं। शरीर के कुछ आवश्यक सत्व पिघल कर मूत्र के साथ द्रवित होने लगते हैं। अतः शरीर की प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है, त्वचा निस्तेज हो जाती है, स्मरण शक्ति और निश्चयात्मक शक्ति भी दुष्प्रभावित होती हैं।
४. दूषित कामवासना का निश्चित परिणाम आसक्ति, निर्बलता, विभिन्न प्रकार के रोग और दर्द, निराशा, दुष्प्रवृतियों का जन्म आदि के रूप में दिखाई पड़ते हैं।
५. यौवन काल में, जब मनुष्य को जीवन और जगत का पर्याप्त अनुभव नहीं होता, वह प्रायः अश्लीलता की ओर प्रवृत्त रहता है। यौवन उन्माद की आँधी में गन्दा साहित्य, अश्लील सिनेमा / उपन्यास / विज्ञापन, इन्टरनेट पर उपलब्ध कामोत्तेजक सामग्री आदि सुप्त कामवृत्तियों को उत्तेजित करने का कारण बनती हैं। नौजवान पीढ़ी इसी मिथ्या जगत को सत्य मानकर दिग्भ्रमित हो जाती है।
६. इसीलिए आधुनिकता बढ़ने के साथ- साथ समाज में मानसिक कामुकता, व्यभिचार, लम्पटता, बलात्कार आदि भी उसी गति से बढ़ते जा रहे हैं। नौजवान पीढ़ी को इन सब बातों को समझ कर सावधान रहने की अति आवश्यकता है।
७. खतरे की बात यह है कि मन से सम्बन्धित होने के कारण इनका प्रभाव / आघात – व्यक्ति के गुप्त मन, चेतना, संस्कारों और स्मृति पटल पर दीर्घ कालिक होता है। जिसे आसानी से हटाया / मिटाया या डिलीट नहीं किया जा सकता। पाप वृत्तियों के मन में जम जाने से अन्तःकरण कलुषित हो जाता है। मनुष्य स्वयं अपनी ही नजरों में गिर जाता है, उसका मनोबल, आत्मविश्वास क्षीण हो जाता है।
८. मन की यह विशेषता है कि एक बार उसमें जो भी अच्छी या बुरी बात / संस्कार बैठ गये – उसे वह आसानी से छोड़ता नहीं है। इसलिए आवश्यक है कि मन को भटकने का अवसर ही न दिया जाए – उसे चिन्तन करने के लिए शुभ / सात्विक / उच्चकोटि के विषय दिये जाऐं, अच्छी संगति, अच्छे साहित्य, अच्छे विचारों से उसे कभी खाली ही न रहने दिया जाय।
९. भोजन, निद्रा, मैथुन, परिश्रम, व्यायाम, तपस्या सहित जीवन के समस्त क्रिया-कलापों में ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ के सिद्धान्त को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
ब्रह्मचर्य ऋषियों ने ब्रह्मचर्य की महिमा का गान बड़े ही मार्मिक शब्दों में किया है। ऐसा कहा गया है-
”मरणं बिन्दु पातेण जीवन बिंदु धारयेत“ ॥हयो-३.८८॥
यह श्लोक बताता है कि बिंदु अर्थात् वीर्य का पतन मृत्यु की ओर ले जाता है एवं वीर्य को धारण करना व्यक्ति को जीवन प्रदान करता है। जीवित कौन? आँखों पर चश्मा, सफेद बाल, पिचके हुए गाल, लड़खड़ाते कदम, झोले व दवाईयाँ क्या यही जीवन की परिभाषा है? क्या सृष्टा का अनुपम उपहार मानव जीवन यही है जिसको पाने के लिए देवता भी तरसते हैं? अधिकाँश व्यक्ति जिंदा लाश बनते चले जा रहे हैं जिनको किसी प्रकार अपने जीवन की अवधि पूरी करनी हैं यही कारण है आत्महत्या करने के 101 उपाय जैसी किताबें विदेशों में खूब बिकती हैं परन्तु भारत के ऋषि जीवन की यह परिभाषा स्वीकार नही करते, युगऋषि श्री राम आचार्य जी के शब्दों में-
”वही जीवित है जिसका मस्तिष्क ठंडा, रक्त गर्म और पुरुषार्थ प्रखर है।“
ऋषि कहते है ‘जीवेम शरद शतम्’
यदि आप जीवन के साथ खिलवाड़ नही करते तो १०० शरद ऋतु आराम से पार कर सकते हैं ऋषि ने शरद ऋतु की बात कही है। प्राणवान व्यक्ति ही शरद ऋतु का आनन्द ले सकता है अर्थात् हम सौ वर्ष तक बड़े मजे से, सक्रिय जीवन जी सकते हैं।
परन्तु दुर्भाग्य हमारा समाज के वासनात्मक और कामुक वातावरण ने हमारे जीवन रस (वीर्य) को निचैड़ कर रख दिया पूरा समाज आज वासना के कोढ़ से ग्रस्त हो गया है क्योंकि हमनें ब्रह्मचर्य की गरिमा को भुला दिया।
ऋषि पतंजलि का सूत्र हैः-
ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्य लाभः। (योग दर्श साधन पाद-१८)
अर्थात् जीवन में ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा से वीर्य का लाभ होता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस श्लोक के द्वारा ऋषि समाज को अथवा मानव जीवन को सामर्थ्यवान बनाने का सूत्र बता रहे हैं। शास्त्रों में सामथ्र्यवान को वीर्यवान की उपमा दी गई है। उदाहरण के लिए श्रीमद्भागवत् गीता में पाण्डवों की सेना के महान् योद्धाओं को वीर्यवान कह कर सम्बोधित किया गया है।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराट द्रुपद महारथः ॥ (१/४)
धृड्ढकेतुकितानः काशिराज वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोज शैबय नरपुअङ्ग वः ॥ (१/५)
युधामन्यु विक्रान्त उत्तमौजा वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेया सर्व एव महारथाः॥ (१/६)
यहाँ पाण्डवों की सेना में बड़े-बड़े शूरवीर है जिनके बड़े-बड़े धनुष है व युद्ध में भीम व अर्जुन के समान है सभी तेजस्वी और वीर्यवान है।
प्राचीन काल में वातावरण पवित्र एवं सात्विक था नर और नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखते थे एवं लोग सहजता से ब्रह्मचर्य का पालन कर लेते थे। नर और नारी का सह-सामीप्य उमंग उल्लासपूर्ण और दिव्यता से भरा भी हो सकता है यदि दोनों की दृष्टि पवित्र है। इस परिस्थिति में नारी को पुरुष की शक्ति कहा जाता है परन्तु दुर्भाग्यवश आज नारी के भोग्य स्वरूप का समाज में इतना अधिक प्रचलन हो गया है व नारी भी स्वयं को उसी रूप से प्रस्तुत (प्रदर्शित) करने लगी है इस कारण ब्रह्मचर्य का पालन एक चुनौती (challenge) बन गया है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर सात धातुओं से बना है जिसमें वीर्य एक महत्वपूर्ण धातु है युवा अवस्था में शरीर में वीर्य धातु पर्याप्त मात्रा में होती है इस कारण व्यक्ति सशक्त जीवन जीता है परन्तु ४० वर्ष के उपरान्त यह धातु कमजोर पड़ने लगती है अतः असावधान व्यक्ति तरह-तरह के गम्भीर रोगों से घिरने लगता है।
जो व्यक्ति स्त्री लोलुप होकर वीर्य धातु को दुर्बल बना लेते है अथवा जो स्त्री के विषय में संयमी रहकर वीर्य को पुष्ट बना लेते हैं उनके परिणाम के विषय में आयुर्वेद कहता है।
भ्रम क्लमोरूदौर्बल्य बल धात्विन्द्रियि क्षयाः।
अपर्वमरणं च स्यादन्यथागच्छतः स्त्रियिम्॥
उपर्युक्त विधि पालन न करने से भ्रम, क्लम, जांघों में निर्बलता, बल व धातुओं का क्षय, इन्द्रियों में निर्बलता और अकाल मृत्यु- ये परिणाम होते हैं।और यदि इस विधि का पालन किया जाए तो-
समृति मेधाऽऽपुरातोग्य पुष्टीन्द्रिय यशोबलैः।
अधिकामन्दजरसौ भवन्ति स्त्रीषु संयता॥
स्त्रियों के विषय में संयमी पुरुष याद्दाश्त, बुद्धि ,आयु, आरोग्य-पुष्टि, इन्द्रिय-शक्ति, शुक्र, यश और बल में अधिक होता है और बुढ़ापा उसको देर से आता हैं।
ब्रह्मचर्य के विषय में हमें दो विरोधी विचार धाराओं का टकराव देखने का मिलता है। एक है पूर्व की धारा जिसको हम भारतीय संस्कृति कहते हैं व दूसरी है पश्चिम की धारा। हमारी संस्कृति ब्रह्मचर्य पालन पर बहुत जोर देती है व इसको तपों में सर्वोत्तम तप कहकर सम्बोधित करती है। पश्चिम (west) की संस्कृति में इस बात का जोर है कि इन्द्रियों के दमन से मानसिक विड्डतियाँ जन्म लेती हैं अतः व्यक्ति को स्वच्छंद जीवन जीना चाहिए। वासना (sex) से जीवन में रस आता है व सम्पूर्ण शरीर में एक प्रकार की charging होती है जो वीर्य निकलता है उसकी क्षति कुछ कैल्शियम, पोटाशियम, व minerals के द्वारा आसानी से हो जाती है। वासना (sex ) से व्यक्ति जवान बना रहता है नहीं, तो life dull होती जाती है। पश्चिम में सिग्मण्ड फ्रायड नामक एक दार्शनिक हुए हैं जिन्होंने इस दिशा में काफी शोध कार्य किया है। west की theory उन्हीं की researches पर आधारित है।
पूर्व और पश्चिम के मतों में भिन्नता इसलिए है क्योंकि पश्चिम के लोग वासना की तृप्ति के लाभों को ही जान पाएँ उनकी शोधें काफी हद तक ठीक है, परन्तु भारत के लोगों ने वासना के रूपान्तर के ज्ञान को जाना।
वासना के रूपान्तर के
द्वारा कैसे व्यक्ति तेजस्वी, वर्चस्वी, औजस्वी बन सकता है इस विद्या पर हमारे यहाँ बहुत शोधकार्य हुआ है जैसे जल नीचे की ओर गिरता है, बिखरा रहता है परन्तु यदि उसको भाप बना कर एक निश्चित दिशा में प्रयोग किया जाएँ तो वह बहुत शक्तिशाली हो जाता है कुछ-कुछ इसी तरह का सिद्धांत हमारे ऋषि देते हैं।
सिग्मण्ड फ्रायड मनोरोगियों पर परिक्षण करते थे और उसी आधार पर उन्होंने अपने परिणाम दुनिया के सामने रखे एक डॉक्टर के क्लीनिक में यदि ऐसे दस मरीज आएँ कि घी खाकर पेट गड़बड़ हो गया और डॉक्टर कहने लगे कि घी खाने से स्वास्थ्य खराब होता है तो यह जानकारी अधूरी होगी यह कहना उचित होगा कि जिनका पाचन कमजोर हो वे ना लें परन्तु अच्छे पाचन वाले व्यक्ति घी खाकर बलवान बन सकते हैं इसी प्रकार जो लोग वासना के रूपातरूण में सफल हो जाते हैं वो अत्यन्त शक्तिशाली बन सकते हैं मनोरोगी तो वो बनते है जो इस विद्या को ठीक से सीख नही पाते व लम्बे समय तक वासनाओं का दमन करते हैं।
विद्युत शक्ति के साथ खिलवाड़ किया जाएँ तो वो झटका मार देती है परन्तु यदि नियन्त्रित कर लिया जाए तो वह वरदान बन जाती है यह बात वासना एवं ब्रह्मचर्य के विषय में भी स्टीक बैठती है इसलिए ऋषि पतंजलि समाज को संयमी जीवन जीने की शिक्षा देते है।
यद्यपि भारतीय धर्मग्रन्थों में ब्रह्मचर्य पालन की बड़ी सुंदरमहिमा बखान की गयी है। परंतु अध्यात्म द्वारा नियन्त्रित जीवन में कामेच्छा की उचित भूमिका को अस्वीकार नहीं किया गया है। उसकी उचित माँग स्वीकार की गयी है किंतु उसे आवश्यकता से अधिक महत्व देने से इंकार किया गया है। जब व्यक्ति आध्यात्मिक परिपक्वता प्राप्त कर लेता है तब यौन-आकर्षण स्वयं ही विलीन हो जाता है उसका निग्रह करने के लिए मनुष्य को प्रयत्न नहीं करना पड़ता, वह पके फल की भाँति झड़ जाता है। इन विषयों में मनुष्य को अब और रूचि नहीं रह जाती। समस्या केवल तभी होती है जब मनुष्य चाहे सकारात्मक, चाहे नकारात्मक रूप में कामेच्छा में तल्लीन या उससे ग्रस्त होता है। दोनों ही परिस्थितियों में मनुष्य यौन चिंतन करता है व ऊर्जा का अपव्यय करता रहता है।
यदि इस शक्ति की तुलना पानी से की जाए तो जब यह संचित हो जाती है तब शरीर में गरमी की, उष्णता की एक विशेष मात्रा उत्पन्न होती है यह उष्णता ‘तपस’ प्रदीप्त ऊष्मा कहलाती है। वह संकल्प शक्ति को, कार्य निष्पादन की सक्रिय शक्तियों को अधिक प्रभावशाली बनाती है। शरीर में अधिक उष्णता, अधिक ऊष्मा होने से मनुष्य अधिक सक्षम बनता है, अधिक सक्रियतापूर्वक कार्य संपादन कर सकता है और संकल्प शक्ति की अभिवृद्धि होती है। यदि वह दृढ़तापूर्वक इस प्रयत्न में लगा रहे, अपनी शक्ति को और भी अधिक संचित करता रहे तो धीरे-धीरे यह ऊष्मा प्रकाश में, ‘तेजस’ में रूपांतरित हो जाती है। जब यह शक्ति प्रकाश में परिवर्तित होती है तब मस्तिष्क स्वयं प्रकाश से भर जाता है, स्मरणशक्ति बलवान हो जाती है और मानसिक शक्तियों की वृद्धि और विस्तार होता है। यदि रूपांतर की अधिक प्रारंभिक अवस्था में सक्रिय संकल्प-शक्ति को अधिक बल मिलता है तो प्रकाश में परिवर्तन रूपांतर की इस अवस्था में मन की, मस्तिष्क की शक्ति में वृद्धि होती है। इससे भी आगे शक्ति-संरक्षण की साधना से ऊष्मा और प्रकाश दोनों ही विद्युत् में, एक आंतरिक वैद्युत् शक्ति में परिवर्तित हो जाते है जिसमें संकल्प शक्ति और मस्तिष्क दोनों की ही प्रवृद्ध क्षमताएँ संयुक्त हो जाती हैं। दोनों ही स्तरों पर व्यक्ति को असाधारण सामथ्र्य प्राप्त हो जाती है। स्वाभाविक है कि व्यक्ति ओर आगे बढ़ता रहेगा और तब यह विद्युत् उस तत्व में बदल जाती है जिसे ‘ओजस्’ कहते हैं। ओजस् अस आद्या सूक्ष्म ऊर्जा ‘सर्जक ऊर्जा’ के लिये प्रयुक्त संस्कृत शब्द है जो भौतिक सृष्टि की रचना से पूर्व वायुमंडल में विद्यमान होती है। व्यक्ति इस सूक्ष्म शक्ति को जो एक सृजनात्मक शक्ति है, प्राप्त कर लेता है और वह शक्ति उसे सृजन की व निर्माण की यह असाधारण क्षमता प्रदान करती है। (सुन्दर-जीवन)
आचार्य श्रीजी काम वासना के सन्दर्भ में लिखते हैं-
धन की तरह ही इस संसार में एक अनर्गल आकर्षण है- काम वासना का। यह एक ऐसा नशा है जो विचार शक्ति की दिशा को अपने भीतर केन्द्रित करता और उसे असन्तोष की आग में जलाता रहता है। यह प्रवृत्ति एक मानसिक उद्विग्नता के रूप में विचार शक्ति का महत्वपूर्ण भाग ऐसे उलझाए रहती है जिसमें लाभ कुछ नहीं, हानि अपार है। मानसिक कामुकता के जंजाल में असंख्य व्यक्ति पड़े हुए अपनी चिन्तन क्षमता को बरबाद करते रहते हैं। इसलिए महामना मनुष्य अपनी प्रवृत्ति को इस दिशा में बढ़ने नहीं देते साथ ही दृष्टिशोधन का ध्यान रखते हैं। भिन्न लिंग के प्राणी का सौन्दर्य उन्हें प्रिय तो लगता है पर अवांछनीयता की ओर आकर्षित नहीं करता। अश्लील साहित्य, गन्दी फिल्म, उपन्यास, अर्धनग्न चित्र, फूहह प्रसंगो की चर्चा आदि के द्वारा यह कामुक प्रवृत्ति भड़कती है।
दुर्भाग्यवश आज नर और नारी घिनौनी हरकतें करके उल्टे-सीधें वस्त्र एवं चाल-चलन अपना कर एक दूसरे के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं इससे पूरे समाज में स्वास्थ्य का संकट, मर्यादा का संकट उत्पन्न हो गया है। आवश्यकता है ऐसे जागरूक समाजसेवियों की जो इस विनाश की आँधी को रोकने
सहायक होता है

16 Comments

  • access Posted 01/02/2021 11:45 AM

    I wish to convey my respect for your generosity giving support to men and women who have the need for assistance with in this theme. Your real commitment to getting the solution all over became quite advantageous and have continuously encouraged many people just like me to reach their dreams. The invaluable suggestions means a lot to me and especially to my colleagues. Many thanks; from all of us. Shandra Dru Pepper

  • erotik Posted 01/02/2021 1:44 PM

    Thanks Lee Ai for sharing your thoughts. When you mention parasympathomimetics, which drug/s did you have in mind? I have previously come across articles that suggested neostigmine. Have never used it myself thus far but kept it in mind. Would love to hear your experience. Kirsteni Marius Ishmael

  • diziler Posted 01/02/2021 3:34 PM

    Excellent presentation at the Roselle Lions Club meeting tonight by Ben! Christi Thibaud Maisey

  • download Posted 02/02/2021 2:52 AM

    Some genuinely prize content on this web site , saved to fav. Tanya Nehemiah Augustina

  • watch Posted 02/02/2021 4:49 AM

    I have learn several good stuff here. Definitely worth bookmarking for revisiting. I surprise how much attempt you place to create this type of fantastic informative web site. Karilynn Craggie Madalena

  • movies Posted 02/02/2021 7:25 AM

    Having read this I believed it was really enlightening. I appreciate you spending some time and energy to put this short article together. I once again find myself personally spending a lot of time both reading and commenting. But so what, it was still worth it! Katheryn Al Westbrooke

  • erotik Posted 02/02/2021 8:45 AM

    It takes serious foresight, but definitely worthwhile! Christabella Ignacio Kirit

  • watch online Posted 02/02/2021 9:11 AM

    Looking forward to reading more. Great post. Awesome. Nicola Papageno Haeckel

  • dublaj Posted 02/02/2021 2:33 PM

    Take into account the information in real time of the quote of the negotiated pair and its correspondence with the markets. Henriette Brennen Bobbi

  • watch Posted 02/02/2021 4:13 PM

    You made some really good points there. I checked on the net for more information about the issue and found most people will go along with your views on this website. Luisa Waylen Ocker

  • hindi movie Posted 02/02/2021 7:52 PM

    Wow! Thank you! I continuously wanted to write on my website something like that. Can I implement a part of your post to my site? Ailey Alexander Sarkaria

  • diziler Posted 08/02/2021 7:06 PM

    I am typically to blog writing and also i really value your content. The short article has truly peaks my rate of interest. I am mosting likely to bookmark your website and also keep looking for new details. Sonnnie Curtice Stav

  • dizi Posted 09/02/2021 1:03 PM

    You made some decent points there. I did a search on the topic and found most persons will agree with your website. Nadya Burtie Kjersti

  • diziler Posted 09/02/2021 2:51 PM

    Phasellus eleifend lacinia nisl et laoreet. Phasellus velit diam, tincidunt non ipsum a, iaculis tristique sapien. Ut vestibulum est sit amet sem suscipit feugiat. In porta pretium dui sed venenatis. Proin elit nisl, ultrices tempor augue a, pharetra lacinia nisi. Reeva Giraud Hudnut

  • diziler Posted 09/02/2021 4:09 PM

    Having read this I thought it was rather enlightening. I appreciate you spending some time and energy to put this informative article together. I once again find myself personally spending way too much time both reading and leaving comments. But so what, it was still worth it! Hilary Pancho Nimesh

  • dizi Posted 09/02/2021 5:38 PM

    thoroughly mixed. Promotional merchandise is a great approach to advertise your organization. Odessa Gale Torres

Add Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat