गर्भावस्था की विकृतियां
गर्भधारण करने पर घर में खुशीयां छा जाती है। गर्भधारण करने पर नवयुवतियों को भी बहुत खुशी होती है, लेकिन गर्भ के विकास के साथ गर्भवती की खुशियां पीड़ा में परिवर्तित होने लगती हैं। गर्भावस्था में वमन, अतिसार, हाथ-वांवों में शोध्थ, रक्ताल्पता, उच्च रक्तचाप, कोष्ठबद्धता, अनिद्रा, अर्श रोग, उदर शूल आदि विकृतियां बहुत होती हैं।
उत्पत्ति :
गर्भधारण के साथ ही वमन विकृति प्रारंभ हो जाती है। कुछ स्त्रियों को कम और कुछ स्त्रियों को अधिक वमन होती है। गर्भावस्था में भोजन में अधिक गरिष्ठ व वातकारक, शीतल खाद्य पदार्थों के सेवन से स्त्रियां उदर शूल से पीड़ित होती हैं। कुछ स्त्रियों को कोष्ठबद्धता हो जाती है तो उन्हें अधिक उदर शूल और वमन होने लगती है। पाचन क्रिया की विकृति कुछ स्त्रियों को अतिसार का शिकार बना देती है।
गर्भावस्था में उच्च् रक्तचाप भी बहुत देखा जाता है। गर्भ के विकास के साथ उच्च रक्तचाप की विकृति अधिक बढ़ती है। गर्भावस्था में भोजन में पौष्टिक खाद्य पदार्थों के अभाव में स्त्रियां रक्ताल्पता की शिकार होती हैं। रक्ताल्पता से गर्भस्थ शिशु का विकास रुक जाता है। गर्भवती को बहुत हानि पहुंचती है। गर्भस्त्राव की आशंका बनी रहती है।
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लक्षण :
गर्भावस्था में स्त्रियां कुछ खाते-पीते ही वमन करने लगती हैं। प्रातः खाली पेट अधिक वमन होती है। कोष्ठबद्धता के कारण उदर शूल होता है और जी मिचलाने की विकृति होती है। कोष्ठबद्धता में उदर में दूषित वायु की अधिक उत्पत्ति होती है। दूषित वायु के ऊपर की ओर जाने से जी मिचलाता है और सिरदर्द होने लगता है। सिर चकराने के लक्षण भी दिखाई देते हैं। योनि के आस-पास खुजली भी होने लगती है।
गर्भावस्था में अतिसार होने से गर्भवती के बार-बार शौच के लिए जाने से शरीर में जल की कमी हो जाती है। गर्भवती शारीरिक रूप से अधिक कमजोर हो जाती है। हाथ-पांवों में शोध की विकृति से अधिकांश स्त्रियां पीड़ित होती हैं। पाचन क्रिया की विकृति के कारण स्त्रियों के मूत्र में तीव्र जलन होती है। उन्हें बार-बार मूत्र त्याग के लिए जाना पड़ता है। गर्भावस्था में मधुमेह की विकृति गर्भवती के लिए अधिक घातक हो जाती है।
क्या खाएं?
गर्भावस्था में वमन विकृति होने पर नीबू के रस को जल में मिलाकर दिन में दो-तीन बार पिएं।
कोष्ठबद्धता की विकृति होने पर त्रिफला का 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें। कोष्ठबद्धता नष्ट होगी।
पुदीनहरा को जल में मिलाकर पीने से वमन विकृति नष्ट होती है।
नारंगी, संतरा खाने व रस पीने से वमन नहीं होती।
किसी स्त्री को पहले गर्भस्त्राव हो चुका हो तो उसे गर्भधारण के साथ केले के तने (कांड) का 5 ग्राम रस मधु मिलाकर प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।
अनार का रस पीने से रक्तस्त्राव की विकृति नहीं होती है।
प्रतिदिन 100 ग्राम सिंघाड़े, कुछ दिनों तक खाने से गर्भाशय की निर्बलता नष्ट होती है।
बेल का गूदा 20 ग्राम और गुड़ 10 ग्राम मात्रा में लेकर जल के साथ सेवन करने से अतिसार बंद होते हैं।
आंवले का चूर्ण 3 ग्राम लेकर उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें। अतिसार बंद होते है।
चावल उबालकर बनाएं मांड को दही या तक्र (मट्ठे) के साथ सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से अतिसार का निवारण होता है।
आंवले के 30 ग्राम रस में मधु मिलाकर सेवन करने से मूत्र की जलन नष्ट होती है।
रात को 15 ग्राम धनिया जल में डालकर रखें। प्रातः उठकर उस धनिए को छानकर, जल में मिसरी मिलाकर पीने से जलन नष्ट होती है।
गर्भावस्था में अधिक प्यास लगने पर जल में नीबू का रस और चीनी मिलाकर सेवन करें।
यह आपके और आने वाले बच्चे, दोनों के लिए बहुत जरूरी है। इसलिए कम से कम 2/3 लीटर पानी रोज पिएं। इससे स्ट्रेच मार्क्स और कब्ज दूर होगी और त्वचा में भी निखार आएगा।
खूब सारी हरी पत्तेदार सब्जियां खाएं। थोड़े-थोड़े अंतराल पर खाएं। एक साथ ज्यादा खाना न खाएं। इससे आपको बेचैनी नहीं होगी और कब्ज की वजह से होने वाली जलन भी कम होगी.
क्या न खाएं?
मीट और जंक फूड से परहेज करें।
घी, तेल, मक्खन आदि से बने खाद्य पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करें।
उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बनें खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
पपीता, आम का सेवन न करें।
चाय, कॉफी, दूध के सेवन से हानि होती है।
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